बचाओ!!!!!!!!!!!!!!!

अभी मैं काफ़ी क्रुद्ध हूँ, क्षुब्ध हूँ. आजकल गुस्सा निकालने का कोई रास्ता नहीं सूझता. अमित की लाइफ़ में तो एक तरह से ‘हैप्पी आर्ज़’ चल रहे हैं…चुँकि वह अस्वस्थ हैं तो मेरे कोप का भाजन आजकल वह कतई नहीं बनते. अपने बाल नोचना या दीवार पे सर फोड़ना जैसी पगलैट हरकतें हम अब करते नहीं. तो इसलिये रास्ते के अभाव में लिख रहे हैं. उम्मीद हैं कि आप लोग हमारी तकलीफ़ समझेंगे.

सुबह से तीन फोन आ चुके हैं. फ़लाना-फ़लाना और टमाका-टमाका बैंकों से. हमारा अपना फ़ोन खराब है इसलिये अमित अपना फ़ोन घर छोड़ के जाते हैं. जिससे काम पड़ने पर बात हो सके. ये और बात है कि ऑफ़िस पहुँचने के बाद अमित का फ़ोन मुश्किल से ही आता है पर पीछे से झिलाऊ कॉल्ज़ की कतार लग जाती है. वो भी हम झेल लेते हैं पर आज हद्द हो चुकी है. आज पहली बार जब मैनें फ़ोन उठाया एक लड़की बोली-‘हैलो’….हमने भी कहा-‘हैलो’…लड़की फिर बोली-‘हैलो…दिस इस सिमरन फ़्रॉम — बैंक’. बैंक सुनते ही मेरा मुँह बन गया…फिर भी हमने तहज़ीब के दायरे में रहते हुए कहा-‘हाय सिमरन’. और फिर उधर से एक बेहद इंटैलिजेंट सवाल आया-‘हाय…..एम आई टॉकिंग टु मिस्टर अमित?’. एक तो बैंक की फ़ालतू योजना का फ़ोन उस पर से इतने टाइम-पास लोग. दिमाग को दिन मे धूप सेकने भेज दो फिर लोगों को फ़ोन घुमाते रहो. एक मिल गयी स्क्रिप्ट…उसमे लिखा है कि ऐसा सवाल पूछना है…तो फिर पूछना ही है…कोई लॉजिक भूल के भी न लग जाये कहीं. शाम को भी ऐसे ही एक महान भैया जी से बात हुई… भैया जी एकदम देसी टोन में बोले-‘हैऽऽलो’…हम भी बोले-‘हैलो, हाँ जी भैया कहिये’. ‘हाँ, अमित जी बोल रहे हैं? मैं —बैंक से’. अबकी बार तो रहा नहीं गया..अरे कैसी आवाज़ हो पर आदमी के जैसी तो नहीं ही है….आवाज़ पर दिन में दूसरी बार बट्टा बर्दाश्त नहीं हुआ..बोले -‘नहीं…अमित जी ऑफ़िस में हैं और ९ बजे से पहले नहीं बोल पायेंगे, उनकी पत्नी बोल रही हूँ ..कहिये!’. बेचारे सकपका गये होंगे. पर असल में अति हो चुकी है. सोते-फ़ोन, जगते-फ़ोन, खाते-फ़ोन, नहाते-फ़ोन….और हर बार निरर्थक फ़ोन…

शुरू शुरू में मोबाइल क्या ही बढ़िया चीज़ लगता था और अब…क्या कहूँ. वही हाल है जैसे शुरू शुरू में प्रेमी तो बढ़िया लगते हैं पर जैसे ही पति बने आपकी नाक में दम कर देंगे. मैं यह नहीं कह रही कि मोबाइल कि उपियोगिता नहीं है किंतु समस्या यह है कि दिन भर घंटी बजती ही रहेगी. उस पर फ़ोन की लगतार गिरती दरें…मतलब और फ़ोन. अभी हाल में तो मैनें ‘ओम नमः शिवाय’ की धुन की रिंगटोन लगा दी थी. कुछ और नहीं तो शायद एक माला ही हो जाय. अभी रिलायंस ने पैसे कम क्या किये लोगों के वारे न्यारे हो गये. सुबह सुबह नाश्ता बना रहे हैं…दिमाग़ में चिंता कि अभी क्या क्या काम निपटाने हैं…एक हाथ में बेलन, एक में कलछी…तभी फ़ोन…’और..क्या हो रहा है….अच्छा नाश्ता…क्या बन रहा है?…गोभी के पराँठे…अच्छा गोभी कच्ची डालती हो या भून के…’ अब गर्दन टेढ़ी कर के कंधे और कान के बीच फ़ोन और संभालो…मज़े की बात ये कि पूरी वार्ता में मेरे मुँह से ‘हाँ’, ‘ह्म्म्म’ जैसे शब्द ही निकलेंगे और फिर थोड़ी देर में सामने वाला कहेगा…और बताओ..! दिन में दो बार दूर की मौसी जी का फ़ोन आता है. उनके फ़ोन से किसी भी रिलायंस पर फ़्री कॉल की सुविधा है…क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, मौसम का हाल, मिस हुए सीरियल की कहानी…और अभी कुछ दिन से जब अमित की तबियत खराब थी तो टेंशन डबल. ‘क्या करें आ नहीं सकते …सोचा फ़ोन पर हाल ले लें’. हर फ़ोन पर पूरी कहानी बताओ…कुछ लोग सुबह हाल पूछते, फिर दोपहर में और फिर शाम को…’अरे! ठीक नहीं हुए…क्यों ठीक नहीं हो रहे!’ …जैसे गोली को अंदर जाते ही घिसी हुई हड्डी की जगह चिपक जाना चाहिये था और अमित को ‘छू’ से ठीक हो जाना था. ये एक फ़ोन न हुआ …जान की आफ़त हो गया. उस पर से ये मोबाइल डेड भी नहीं होते. इसलिये कई बार तो मैं फ़ोन गद्दे की नीचे दबा देती और खुश होती रहती.

आज भी मुझे फ़ालतू कॉल्ज़ से बचने की राह ही नहीं सूझ पाती. और इसी वजह से फ़ोन के प्रति वैराग्य उत्पन्न होता जा रहा है. मेरे फ़ोन को खराब हुए १ महीना हो चुका है. और मैं बेहद खुश हूँ. चाहती हूँ और थोडा़ समय लटका रहे. हाँलाकि मैं नये साल की संध्या पर अपने दोस्तों से बात नहीं कर पाऊँगी….पर फिर भी! अच्छा ही है… इसबार मैं सबको पत्र लिखूँगी…पुराने दिनों की तरह. फिर इंतज़ार करूँगी कि डाकिया बैंक के स्टेटमेंट और फ़ोन के बिल की जगह कभी मेरे लिये कोई चिट्ठी भी ले के आये…जिसे सहेज कर रख सकूँ…बार बार पढ़ सकूँ.

Published in: on दिसम्बर 29, 2006 at 6:14 अपराह्न  Comments (14)  

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14 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. कल ही आपने कहा था- चलिये फिर अगले साल मिलते हैं..अच्छा हुआ, बैंक वाले ने परेशान किया. कम से कम इसी बहाने कुछ लिखा तो. खैर, यहाँ तो बैंक वालों की नालायकियत है मगर मेरी एक दोस्त की पत्नी जब भी फोन उठाती हैं, आवाज से समझ ही नहीं आता कि भाई साहब बोल रहे हैं कि भाभी जी. 🙂
    -चलते चलते बताता चलूँ कि भाभी जी आजकल मुलैठी खा रही हैं और सुबह शाम एक चम्मच शहद में काली मिर्च. किसी ने उनको बताया है इससे आवाज पतली हो जाती है. अब क्या पता कितना सच है.

    -अरे मजाक कर रहा था, कृप्या अन्यथा न लें..यह लिजिये स्माईली 🙂 🙂

  2. इस साल कुछ चिट्ठियां पाने के लिये शुभकामनायें!भगवान अगर हैं तो तुम्हें अनचाहे फोन से बचायें!

  3. एक शुभकामना संदेश हमें भी डाक से भेजैयेगा, आज कल डाक से पत्र आने ही बन्द हो गए है. 🙂
    सही कहा विज्ञापनी फोनो ने नाक में दम कर रखा है. आपके कान व दिमाग सलामत रहे. 🙂

  4. अरे निधि, ये क्या इतनी जल्दी हिम्मत हार गयी। ध्यान रखिए, समस्या हमेशा समाधान के साथ आती है, टेलीमार्केटिंग वालो की काट ये रही । पढिए और अपनाइए, फिर देखिए, टेलीमार्केटिंग वाले आपसे दूर ना भागे तो कहना।

  5. हम तो इस मामले में खुश नसीब हैं, मोबाईल फ़ोन की अब तक जरूरत ही नहीं पड़ी और कॉफ़े में जो फोन था उसे भी बन्द करवा दिया है, यानि कोई परेशान नहीं करता, जिसे करना होता है हम ही कर लेते हैं चैट पर 🙂
    हाँ इन दिनों एक नई समस्या ने घेर जरूर लिया है पिछले डेढ़ दो साल से घर पर हमने टीवी नहीं खरीदा था, अब जब टीवी आ गया है जिन्दगी बेकार हो गयी है पहले कुछ पढ़ना भी हो जाता था समय पर सो भी जाते थे, अब सब कुछ बन्द हो गया है।

  6. आपके पत्र का इंतजार रहेगा
    वैसे मोबाइल के मारे नाक में दम जरूर हो पर लोग इसे कान से चिपकाये बिना जी नहीं सकते। मानो मोबाइल से ऑक्सीजन निकलकर नाक की बजाय कान से फ़ेंफ़ड़ों में पहुंचती हो

  7. खामखा: मोबाइल फ़ोन को दोष दिया जा राहा है, अरे भाई कोई रूबरू सेल्समेन आ जाए या बैन्क वाली आ जाएं उसके बजाय तो अच्छा है कि फ़ोन पर ही पिण्ड छूट जाए। सड़क चलते ही कोई रोक कर बात करे तो सुनना तो पड़ेगा ही न कि क्या कह रहा है, उसकी अपेक्षा मोबाईल पर टालना सरल है। मुझे लगता है कि जो लोग मोबाइल को हव्वा समझते हैं वे ही शिकायत करते हैं। कोई पोस्ट कार्ड आपको मिल जाए तो वह भी परेशानी पैदा कर सकता है खास कर बिना पता लिखा हुआ, जब कि थोड़ा बहुत यदि ऒपरेट करना आता हो तो मेसेज तो आसानी से डीलेट किया जा सकता है।

  8. roman english mein comments ke liye shamaa prarthi hooon… Aap ka blog mujhe bahut pasand aayaa….abhi poora nahi padha paaya hoon…..phir baar baar aana hoga… likhte rahiye….

  9. त्रासद कथा है वो बेचारे भी क्‍या करें- रोजी का सवाल है। वैसे कुछ कहो अपने MTNL के मोबाइल में ये बीमारी कम है।

  10. the hindi script doesn’t appear correctly in Firefox. Use this site – http://www.google.com/transliterate/indic/
    It may help you get rid of browser compatibility problem.

    :))

  11. लहर नई है अब सागर में
    रोमांच नया हर एक पहर में
    पहुँचाएंगे घर घर में
    दुनिया के हर गली शहर में
    देना है हिन्दी को नई पहचान
    जो भी पढ़े यही कहे
    भारत देश महान भारत देश महान ।
    NishikantWorld

  12. नीधि जी
    बहुत सुन्दर लिखती हैं आप.. पढ कर खुशी हुई.. लिखती रहें…. हम पढने आते रहेंगे

  13. I really liked ur post, thanks for sharing. Keep writing. .Your blog is nice. I discovered a good site for bloggers check out this http://www.blogadda.com, you can submit your blog there, you can get more auidence.

  14. Nidhi Ji… Lagta hai aapne hamari prathna par bilkul bhi dhyan nahi diya. aur dobara likhna shuru nahi kiya. aise mein humne phir se aapke sare purane lekho ko padhna start kar diya aur bharosa kijiye inme abhi bhi woh ras hai ki mai phir se sabhi post ko padh gaya. Kripya balak ki prathna par gaur kare aur phir se likhne ka kast kare. dhanyawaad.. Rohit Tripathi


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