मेरा भारत और एक छोटा सा प्रश्न

बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं. बस जी नहीं किया. इस बीच बड़ी बड़ी घटनायें हो गयीं भारत में. मैं कुछ लिखने के बजाय बस यह सोचती रह गयी कि क्या हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने इसी भारत का सपना देखा था. अगर नहीं तो कहाँ चूक गये हम.  आज अन्तर्जाल पर ऐसे ही विचरते हुए श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के एक लेख ने ध्यान आकर्षित किया, शीर्षक था–‘भारतीय होने पर गर्व करें’. आज के समय में यदि राजनीति से जुड़े किसी व्यक्ति ने मेरे मानसपटल पर छाप छोड़ी है तो वे हैं हमारे माननीय राष्ट्रपति महोदय. अत्यंत ज्ञानी, विद्वान तथा अनुभवी श्री कलाम अपने ज्ञान, सकारात्मक एवं वैज्ञानिक सोच तथा विनम्र व्यवहार के कारण सदा ही मेरे लिये श्रद्धेय रहे हैं. उनके शब्दों ने मन में हमेशा एक आशा तथा ऊर्जा का संचार किया है. अत: उनके लेखन के प्रति मेरा सहज आकर्षण स्वाभाविक है. मुझे नहीं पता कि इस लेख को कितने लोगों ने पढ़ा है पर इस लेख को पढ़ कर मुझे ये अवश्य लगा कि  हर भारतीय को इसे पढ़ना चाहिये. अत: उनके इस लेख के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ जिन्होंने मुझे न सिर्फ़ अत्यधिक प्रभावित किया अपितु मेरी सोच को एक नयी दिशा दी.

” भारत को लेकर मेरे तीन दृष्टव्य हैं. हमारे इतिहास के तीन हज़ार सालों में दुनिया भर के लोगों ने हम पर आक्रमण किये हैं, हमारी ज़मीनें हथियायी हैं, हमारे दिमाग़ों पर विजय पायी है. सिकंदर के बाद से  ग्रीक, तुर्क, मुसलमान, पुर्तगाली, बर्तानी, फ़्रांसीसी तथा डच सभी आये, हमें लूटा और जो हमारा था वह ले के चले गये. किंतु इसके बाद भी हमने किसी राष्ट्र के साथ ऐसा नहीं किया. हमने कभी किसी पर विजय पाने की कोशिश नहीं की, उनकी ज़मीन, सभ्यता तथा इतिहास पर आधिपत्य स्थापित करने की चेष्टा नहीं की. अपना जीने का ढंग किसी पर नहीं थोपा. क्यों? क्योंकि हम दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं.

इसीलिये भारत को लेकर मेरा पहला दृष्टव्य स्वतंत्रता से संबधित है. मुझे लगता है कि भारत को यह द्रष्टव्य १८५७ में मिला जब स्वतंत्रता की लड़ाई की शुरुआत हुई. हमें अपनी इस स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिये, इसका सम्मान करना चाहिये. यदि हम स्वतंत्र नहीं है तो कोई हमारा सम्मान नहीं करेगा.

भारत को लेकर मेरा दूसरा दृष्टव्य प्रगति को लेकर है. ५० सालों से हम एक विकासशील देश हैं. अब समय आ चुका है कि हमें स्वयं को विकसित देश के रूप में देखना होगा. जी.डी.पी. की दृष्टि से हम विश्व के प्रथम पाँच राष्ट्रों में से हैं. अधिकांश क्षेत्रों में हमारी विकास दर १० % के लगभग है. हमारा गरीबी का स्तर गिरा है. हमारी उपलब्धियाँ विश्व स्तर पर पहचान पा रही हैं. इसके बाद भी हम में आत्म-विश्वास की कमी  है जो हम खुद को एक विकसित, आत्म निर्भर तथा आश्वस्त देश के रूप में नहीं देख पाते. क्या यह उचित है?

मेरा तीसरा द्रष्टव्य है कि भारत को विश्व के सामने खड़ा होना होगा. शक्तिशाली शक्ति का ही सम्मान करते हैं. हमें न सिर्फ़ सैन्य दृष्टि से अपितु आर्थिक दृष्टि से भी सुदृढ़ होना होगा. ये दोनों साथ-साथ चलते हैं.
 

……..

आण्विक ऊर्जा विभाग तथा डी.आर.डी.ओ. की हाल ही में ११ तथा १३ मई को हुए नाभिकीय परीक्षणों में महत्वपूर्ण भागीदारी रही. अपनी टीम के साथ इन परीक्षणों मे भाग लेने तथा विश्व को यह दिखा पाने कि भारत यह कर सकता है एवं अब हम एक विकासशील देश नहीं अपितु विकसित देशों में एक हैं, की खुशी मेरे लिये अतुलनीय है. इससे मुझे भारतीय होने पर बेहद गर्व हुआ. हमने ‘अग्नि’ के पुनरागमन के लिये भी एक अन्य ढाँचा तैयार किया है जिसके लिये हमने एक अत्यंत हलके पदार्थ का विकास किया है. बहुत ही हलका पदार्थ जिसे कार्बन-कार्बन कहते हैं.

एक दिन ‘निज़ाम इन्स्टिट्यूट ऑव़ मेडिकल साइंसज़’ के एक हड्डी रोग विशेषज्ञ मेरी प्रयोगशाला में आये. उन्होंने वह पदार्थ उठाया और पाया कि वह बहुत हल्का था. उसके बाद वह मुझे अपने अस्पताल ले गये, मरीज़ों से मिलवाने के लिये. वहाँ छोटे-छोटे लड़के और लड़कियाँ भारी भारी धात्विक कैलीपर पहने हुए थे. लगभग तीन-तीन किलो वज़न वाले कैलीपर पहन कर ये बच्चे किसी प्रकार अपने पैरों को घसीट रहे थे. डॉक्टर ने मुझसे कहा – ‘मेरे मरीज़ों का कष्ट दूर कर दीजिये’. मात्र तीन हफ़्ते में हमने ३०० ग्राम के वज़न वाले कैलीपर का निर्माण कर लिया. जब हम उन्हें लेकर अस्पताल गये तो बच्चे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पाये. अब वे घिसटने की बजाय आराम से चल सकते थे. उनके माता-पिता के नेत्र हर्षातिरेक से भर आये. इस कार्य से मुझे स्वर्गीय-सुख मिला.

हम अपने देश में अपनी ही क्षमताओं और उपलब्धियों को पहचानने में क्यों हिचकिचाते हैं? हम एक अत्यंत गौरवशाली राष्ट्र हैं. हमारी सफलता की कितनी ही अद्भुत कहानियाँ हैं जिन्हें हम अनदेखा कर देते हैं. क्यों? हम विश्व में गेहूँ के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. हम चावल के भी दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. दुग्ध-उत्पादन में हम प्रथम स्थान पर हैं. ‘रिमोट सेन्सिंग सैटेलाइट’ के क्षेत्र में भी हम प्रथम हैं.

डॉ. सुदर्शन को देखिये. उन्होंने एक आदिवासी गाँव को स्व-पोषित आत्म-निर्भर इकाई में बदल दिया. ऐसे लाखों उदाहरण हैं किंतु हमारे मीडिया को मुख्यत: बुरी खबरों, असफलताओं तथा आपदाओं की धुन लगी रहती है. एक बार मैं तेल अवीव में था और इज़राइली समाचार पत्र पढ़ रहा था. यह दिन उस दिन के बाद का था जब बहुत से हमले और बमबारी हो के चुकी थी. बहुत से लोग काल का ग्रास बन चुके थे. हमस ने हमला किया था. किंतु समाचार पत्र के पहले पन्ने पर एक ज्यूइश सज्जन का चित्र था जिन्होंने पाँच साल में अपनी बंजर रेगिस्तान ज़मीन को हरे-भरे बाग़ मे बदल दिया. हर इंसान ने उठते ही ऐसी प्रेरणाप्रद तस्वीर देखी. हत्या, बमबारी तथा मृत्यु के भयावह समाचार भीतर के पन्नों में अन्य समाचारों के बीच दफ़्न थे.

भारत में हम सिर्फ़ मृत्यु, बीमारी, आतंकवाद तथा अपराध से संबंधित समाचार ही क्यों पढ़ते हैं? हम क्यों इतने नकारात्मक हैं? एक और प्रश्न- एक राष्ट्र के तौर पर हम विदेशी वस्तुओं से इतना प्रभावित क्यों हैं? हमें विदेशी टी.वी. चाहिये, विदेशी कपड़े चाहिये, विदेशी तकनीक चाहिये. हर आयात की गई वस्तु से इतना लगाव क्यों? क्या हमें इस बात का अहसास है कि आत्म-सम्मान आत्म-निर्भरता के साथ ही आता है. मैं हैदराबाद में एक भाषण दे रहा था जब एक १४ वर्ष की लड़की मेरा ऑटोग्राफ़ लेने आयी. मैनें उससे पूछा उसके जीवन का उद्देश्य क्या है : उसने कहा – ‘मैं विकसित भारत में रहना चाहती हूँ’. मुझे और आपको, उसके लिये, ये विकसित भारत बनाना  ही होगा.”

यह पूरा लेख आप यहाँ  पढ़ सकते हैं. इस लेख यदि हमें कोई प्रेरणा मिली तो उसे हमें हृदय तक सीमित नहीं रखना है, हमें कर्म करना होगा, राष्ट्र-सेवा के मौके ढूँढने होंगे. समय आ गया है कि आज की युवा पीढ़ी परिवर्तन लाने का बीड़ा उठाये. और यह हमारा विश्वास है कि जब हमारे देश कि लाखों-करोड़ों प्रतिभायें हाथ से हाथ मिला आगे बढ़ेंगी तो कोई शक्ति, कोई आपदा हमारे विकास का मार्ग नहीं रोक पायेगी.

इस के साथ आप सब से एक और प्रश्न करना चाहूँगी. एक बात को लेकर दुविधा में हूँ. कई बार अन्तर्जाल पर ऐसा कुछ दिख जाता है जो बहुत प्रेरणाप्रद लगता है. ऐसे में यह सोचती हूँ कि उसे चिट्ठे पर डालूँ य न डालूँ, क्योंकि वह मौलिक नहीं है. वैसे यह निजी सोच हो सकती है पर आप क्या कहते हैं? क्या नवीनता और मौलिकता को वरीयता दूँ या अगर कुछ अच्छा मिले तो सिर्फ़ बाँटने तथा औरों को भी वह दिशा दिखाने के उद्देश्य से यहाँ डालूँ, यह जानते हुए भी कि वह सामग्री और भी कहीं उपलब्ध है. आप अन्तत: क्या ढूँढते हैं किसी चिट्ठे पर?

Published in: on सितम्बर 8, 2006 at 11:41 अपराह्न  Comments (14)  

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14 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. निधि जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। यह लेख मैंने भी पहले किसी जाल पृष्ठ पर देखा और पढ़ा था, किंतु वह URL विस्मृत हो गया था। इसको पुन: प्रकाश में लाने के लिये धन्यवाद।

    दूसरी बात जो आपने रखी है कि अन्यान्य अंतर्जाल के पृष्ठों की जानकारी की, तो मेरा विचार यह है कि इसके दो विकल्प हैं – (अ) आप ऐसे पृष्ठों का सार वर्णन करते हुए उनकी कड़ी (link) दे सकती हैं, और इसमें कोई वर्जना भी नहीं होगी (ब) यदि वे पृष्ठ हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं में हैं तो कदाचित उनका हिन्दी अनुवाद तो प्रस्तुत किया जा सकता है (यदि मूल प्रकाशक की अनुमति हो अथवा मूल लेख कॉपीराइट न हो तो)

    विकल्प (अ) तो कॉपीराइट की दशा में भी अपनाया जा सकता है

    एक और बात – ऐसे पृष्ठों को आप एक विशेष निर्दिष्ट श्रेणी में संकलित कर सकती हैं – जैसे जीतू जी साप्ताहिक जुगाड़ लिंक प्रकाशित करते हैं।

  2. बहुत अच्छा लेख फिर से यहां तक लाने और पढवाने के लिये धन्यवाद. पहले भी कहीं पढ़ा था और आज पुनः.

    जारी रखें इस तरह की श्रृंखला को.

    समीर लाल

  3. बहुत खूब! कल जब पढा़ तो सवाल का जवाब देना भूल ही गया.
    मेरा तो यही मानना है कि अच्छी चीजें सामने आनी चाहिये.अगर नेट
    पर हैं भी तो दुबारा सामने लाने में कोई बुराई नहीं है.अब यहां कोई सबसे पहले के लिये लडा़ई तो है नहीं!राजीव जी ने बता ही दिया .आगे और रास्ते अपने आप खुलेंगे.शुभकामनायें.

  4. मेरा मानना तो ये है कि कोई भी अच्छी जानकारी लेख यदि हिन्दी मे किसी भी तरह उपलब्ध करायी जा सके चाहे वो मौलिक हो ना हो, कराई जानी चाहिये

  5. बहुत बढिया लेख । यहाँ तक लाने के लिये शुक्रिया । मैंने पहले नहीं पढा था ।

  6. Main APJ Abdul Kalam ji se bilkul sahmat hoon. Par shayad hum sab samaj sudhar ke karya sirf isliye nahi kar paate kyunki “Ghar ki Safai mein Haath Kaun Gande Kare?”. Jabki hum sabhi jaante hai ke Safai chahe ghar ki ho ya Desh ki, Haath to gande hone hi hai. Mere kathan ka sirf ek hi tatparya hai ke, karm aisa karo ke apne samaj, apne desh ka bhala ho. Ye na soocho ke us karya ko karne se tumhe kuch ghaata hota hai. Agar har manushya is “Main” ki bhavna se upar uth ke “HUM” ki takat ko samajh le to shayad ye desh aur tarraki karega.

    Dhanyawaad,
    Ankur

  7. nidhi ji molikata or nijta mayne nahi rakhti.pathk ka udyashya achhe blogs padhana hota he .me naya hone k karan hindi me likh pane me asmarth hoon iske liye shma kijiye.aap sadhuvad ki patra he . aap mujhe niji e male bhi kar sakti hoon . lakh ko prasarit karne hetu aapka aabhar .

  8. अंतर्दृष्टि और प्रेरणा का कोई विकल्प नहीं है . नवाचार और उन्नयन की डगर वहीं से शुरु होती है .

  9. निधी जी सबसे पहले सुंदर लेख के लिए बधाई।

    फिर आपने जानना चाहा है कि कया नेट पर मिले दुसरो के लेखों को आप अपने ब्लाग पर प्रकाशित कर सकती है या नही। मेरा मानना है के आप को ऐसा जरूर करना चाहिए। यदि आप ऐसा नही करती तो मुझे इतना अच्छा लेख पढने को कहाँ से मिलता।

  10. Atmanirbherta se Atmasamman prapta hota hai.Atmasamman avam Atmavishwas Chharitra ka gathan kar sakata hai.

  11. Mam. Mene aaj ki aap ka blog chintan ke bare me rajasthan patrika me padha. Bahut achha lga. Sundr lekh likhne ke liye or hamare tk phuchane ke liye dhanyavad.

  12. धन्यवाद सोनू जी, मैं कोशिश करूंगी कि समय समय पर लिखती रहूँ.

  13. Abhi hal hi me newspsper me aapke bare me padha. to socha shayad me bhi aapke madhyam se apne dil ki bat kah saku.Bada garv hota ha Bhartiya hone par. jab 26 january a 15 august aata ha or deshbhakti geet sunate ha.or agle hi din phir se desh or desh ke netaon ko kosne me ham ye bhul hi jate ha ki inhe ham hi lae the or ab jo ho raha ha use bhi ham hi badhava de rahe ha. Kal parso Yasin Malik e Ajmer aane per hue bawaal o padh rahi thi. asin a bhatiya dhwaj o lekar kahi gayi bat ne andar tak jhakjhor diya.Itni nafrat ‘BHARAT MAA’ ke lie dil me aah uthi.
    Dusari ghatna thi kuch samay ke lie surkhiyon me rahe us chote se balak ‘Budhiya or uske coach ki’.Pata chala coach Biranchi Das ka nidhan ho chuka h. Ye vahi h jinhone us garib parivar ke bachhe ko apna kar uska bhavisa sudharne ki koshish ki. apko nai lagta aise bachhe hi aage antarrastriya star ki pratiogitao me bharat ka naam roshan karenge.pr aab to vo ha hi nai to ye HIRA bhi garibi or abhao ke daldal me hi daba rah jaega. Us time itna bawal uthane vale ab ku aage nahi aate uski jimedari lene ke liye.
    15 prashto ke newspaper me bas yahi do ghatnae thi padhne layak. baki to mar-dhadd, bhrashtachar,mar-kat. dhanawad Nidhi didi.

  14. nidhiji sabhi bindu thik hai.parantu mujhe yah samaj nahi aata ki ham sab keval aur keval kisi vartman samsya ke prati chintit hote hain. samast samasyao ki jar ki taraf dhyan kyoun nahi dete hai.vartman me swatantrata swachchhandata me badal gai hai aur ham sab usi me bahak rahe hain. yah manmanapan kab samapt hoga. kab hum sab aman chain santi aur samyapuran samaj banayenge.


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