विश्व कुँवारा मंच द्वारा जारी सम्मन का जवाब

मेरी मुवक्किला ‘निधि देवी’ के पास समय पर कोई वकील उपलब्ध न होने के कारण मैं लाला मल्लूमल speechless-smiley-008.gif अपने आप को उनका वकील घोषित करता हूँ। ये रहे मेरे वक़ालत की शिक्षा के प्रमाण-पत्र…clipart_office_papers_020.gif

मेरी मुवक्किला पर विश्व कुँवारा परिषद के अध्यक्ष speechless-smiley-003.gif ने आरोप लगाया है कि उन्होनें कुँवारों की ‘बेइज़्ज़ती’ ख़राब की।

माई लॉर्ड, मेरी मुवक्किला मासूम है, निर्दोष है। उस पर जो भी आरोप लगाये गये वे निराधार हैं। अब इस किस्से के बारे में क्या कहूँ। हे भगवान! बात का बतंगड़, तिल का ताड़ और राई का पहाड़ सब बना डाला मेरी मुवक्किला की बात का। अब कुँवारा मंच के लोग कहेंगे कैसा तिल? कौन सी राई? क्योंकि ये लोग बात का सिर्फ़ शाब्दिक अर्थ देख पाते हैं। भाव समझने की बूझ विधाता शायद शादी के बाद ही दे इन्हें। ‘इन्सान‘ से लेखिका का मतलब ‘सुघड़ इन्सान‘ से था, पर कौन समझाये। वैसे कहा तो ये भी गया है कि मनुष्य सामाजिक पशु है, तो फिर वादी पक्ष ने इसके लेखक को ढूँढा अब तक कि नहीं? या फिर यह बात सबके लिये कही गयी है इसलिये स्वीकार कर लिया! मजे की बात यह कि ई-छाया जी को छोड़ किसी शादीशुदा पुरुष नें लेखिका का विरोध नहीं किया 🙂 । सबको मज़ा आया पढ़ के। अनूप जी ने तो ‘कैसे कैसे सुधार किये गये’ इसके बारे में लेखिका को अपना व्यक्तिगत अनुभव लिख डालने को भी उकसा डाला। सागर भाई नें कहा है कि ‘हम भी लिखने लगें तो’। जी शौक़ से लिखिये। हमने कब रोका? अपनी मेहनत का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना चाहते हैं, अवश्य करिये। लेखिका नें नहीं कहा कि पत्नियाँ सर्व-गुण-संपन्न होती हैं।

माई लॉर्ड, शादीशुदा पुरुष दफ़्तर से सीधे घर को निकल लेता है, पत्नी और बाल-बच्चों के साथ समय जो बिताना होता है। किंतु कुँवारा मंच के लोग अपने खाली समय को व्यतीत करने के लिये मेरी मुवक्किला जैसे सीधे-सादे लोगों पर ऊल-जुलूल आरोप लगाते रहते हैं। उनसे उलझते रहते हैं…ऊट-पटाँग मुकदमे चलाते हैं। 

लेकिन अब मुद्दे की बात यह है कि मेरी मुवक्किला निधि देवी किसी भी सज़ा को मानने से इनकार करती हैं। हर्जाने के तौर पर प्रस्तावित वैवाहिक विज्ञापनों का स्वागत है। इससे मेरी मुवक्किला को दो फ़ायदे हैं- एक, लड़कियाँ भी चिट्ठा पढ़ने में रुझान दिखायेंगी। हो सकता है कि कुँवारी कन्याओं के माता-पिता, नाते-रिश्तेदार भी चिट्ठे में रुचि लें। टी.आर.पी. बढ़ने की ९९.९९% संभावनाओं के मद्देनज़र यह विकल्प लेखिका के मन को भा गया है। दूसरा फ़ायदा यह कि अगर ऐसे विज्ञापनों के चलते इस कुँवारा परिषद के दो-चार सदस्यों की भी शादी हो जाये तो ‘सुघड़ इन्सानों’ की संख्या में वृद्धि हो जायेगी और लेखिका के क्रांतिकारी विचारों के पीछे लट्ठ ले के घूमने वालों की संख्या में कमी। कुल मिला कर लेखिका की पौ बारह है। अत: ‘शुभस्य शीघ्रम’ की तर्ज पर कुँवारा मंच के सदस्य फटाफट विज्ञापन तैयार करवा लें। 😀

वैसे मैं आखिर में मैं लेखिका की ओर से कहना चाहता हूँ कि नारी जीवन को एक सलीका़ देती है। इस बात के बारे में आप उनसे पूछिये जो शादीशुदा हैं। ऊपर ऊपर कहते होंगे कि जी हम तो फँस गये पर कभी अनुरोध कीजियेगा कि सच सच दिल की बात कहें।

बाकी रहा मैं, जिसकी कहानी सुनाते सुनाते मेरी मुवक्किला इस मुकदमेबाज़ी के पचड़े में पड़ गयी, उसकी आगे की कहानी सुन के आप को खुद अंदाज़ा हो जायेगा की मेरी मुवक्किला कहीं भी दोषी नहीं थी। मेरी मुवक्किला, मेरी कहानी के साथ शीघ्र ही उपस्थित होगी। धन्यवाद।

निर्णय: clipart_office_papers_006.gif ये अदालत निधि देवी को बाइज़्ज़त बरी करती है और कुँवारा मंच के लोगों को आदेश देती है कि एक साल के भीतर-भीतर शादी योग्य सभी सदस्य शादी कर सद्गति को प्राप्त हों, घर-गृहस्थी में दिमाग़ लगावें। cool-smiley-0211.gif aktion033.gif

Published in: on अगस्त 25, 2006 at 9:27 अपराह्न  Comments (6)  

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6 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. “कभी अनुरोध कीजियेगा कि सच सच दिल की बात कहें।” अधिकतर तब भी झूठ ही बोलेंगे……:) आदत जो पड़ गई है शादी के बाद से.

  2. आगे की कहानी प्रस्तुत होने तक हम अदालत के इस निर्णय को मानने से इन्कार करते हैं, काश पं. बिलवासी हयात होते हमें लगता है उपरी अदालत में हमारे मुकदमे की पैरवी वह बेहतर कर सकते थे, वैसे हमें ई-छाया जी पर पूरा विश्वास है, वे अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। 🙂

  3. समीर जी की बात पर गौर करें

  4. विवाहितों के पक्ष में हुये निर्णय के बावजूद मुझे लगता है कि यह बिना आरोपी की बात सुने निर्णय हुआ है। मेरी सलाह है कि कुंवारा संघ के सदस्य,अध्यक्ष अपना पक्ष उच्च अदालत में प्रस्तुत करें।

  5. अदालत का फैसला तो एक तरफा है, लेकिन अब चूंकि अदालत है इसलिये मान्य है, पहली गलती पर आपको चेतावनी देकर छोडा जाता है।

  6. ये तो रजत शर्मा की अदालत लगती है जहां सभी बे-इज्‍ज्‍त वाले बा-इज्‍जत ही बरी होते है। 🙂


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